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1) मीडिया शोध(Media sodh)

मीडिया शोध(Media sodh)


शोध


Media sodh(मीडिया शोध):-जो कुछ भी ज्ञात नहीं है अथवा जिसकी अभी तक खोज नहीं की गई है उसे वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा ढूंढना अथवा सत्यापित करना शोध कहलाता है। वहीं मीडिया शोध का तात्पर्य उस शोध से है जिसका संबंध मीडिया के किसी क्षेत्र से हो.


शोध का अर्थ है- शंकाओं का निराकरण करना। अंग्रेजी में शोध के लिए Research (रिसर्च) शब्द का प्रयोग किया जाता है। रिसर्च लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है- पुनः खोज। (media sodh)


पी.एम. कुक के शब्दों में- “किसी समस्या के संदर्भ में ईमानदारी, विस्तार तथा बुद्धिमानी से तथ्यों, उनके अर्थ तथा उपयोगिता की खोज करना ही अनुसंधान है।”


शोध में या तो किसी नए तथ्य, सिद्धांत, विधि या वस्तु की खोज की जाती है या फिर प्राचीन तथ्य, सिद्धांत, विधि या वस्तु में परिवर्तन किया जाता है। शोध करते समय पूर्वाग्रहों और रूढ़ियों की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। पूरी प्रक्रिया की सफलता के लिए एक व्यवस्थित तरीके से गुजरना होता है, इसमें विभिन्न चरणों की क्रमबद्ध व्यवस्था ही शोध का स्वरूप निर्धारण करती है। शोध व्यवस्थित ज्ञान की खोज है।(media sodh)


शोध के क्षेत्र(media sodh)– 


शोध(Media sodh) के मुख्य तो दो क्षेत्र होते हैं- साइंस और सोशल साइंस।

साइंस से जुड़े अनुसंधान विज्ञान और तकनीकी से जुड़े शोध होते हैं। यह मुख्यतः प्रायोगिक तरीके से ही किए जाते हैं।सोशल साइंस यानी कि समाज विज्ञान से जुड़े शोध अर्ध-प्रायोगिक होते हैं। समाज विज्ञान के विषयों में राजनीति, समाज, दर्शन, मनोविज्ञान, सामाजिक, आर्थिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक, संचार संबंधी शोध शामिल होते हैं। (Media sodh)

मीडिया शोध(media sodh), समाज विज्ञान शोध का ही अंग है।


शोध(media sodh) के विविध आयाम-


विविध आयाम से मतलब ‘शोध क्यों करना चाहते हैं’, से है यानी कि उसका बेसिक ऑब्जेक्ट क्या है। शोध के दो आयाम माने जाते हैं। 

1) व्यावहारिक आयाम– शोध में जो भी थ्योरी या फार्मूला निकल कर आएगा, उसका व्यवहार में किस तरीके से प्रयोग कर सकते हैं; 

2) सैद्धांतिक आयाम– सिद्धांत निर्माण करना या थ्योरी देना। यानी शोध का प्रयोग किसी सिद्धांत का प्रतिपादन करने के लिए करना।


शोध(Media sodh) की सीमाएं


हर शोध(Media sodh) की सीमा होती है। सीमा यानी कि वह अंतिम बिंदु जहां तक किसी शोध में पता लगाया जा सकता है। सूट की निम्नलिखित सीमाएं मानी जा सकती हैं- 

●हमेशा एक्यूरेट रिजल्ट नहीं मिलता (खासतौर से सोशल साइंस में) 

●कई विषयों में दायरा सीमित होता है। इसका कारण शोध सामग्री, रिसोर्स हो सकते हैं।   

●समय की पाबंदी   

●सीमित बजट   

●शोध के विषय में रुचि कम होना   

●सेंपलिंग मेथड का ज्ञान नहीं होना   

●समाज में उसका सीमित उपयोग


शोध (Media sodh)के प्रेरणा स्रोत-


   ●सामाजिक सेवा    

●व्यावसायिक उपयोग के लिए 

 ●समस्या का समाधान जानने के लिए    

●बौद्धिक आनंद  

 ●अकादमिक प्रोफाइल बनाने के लिए    

●गहन अध्ययन के लिए


शोध(Media sodh) के प्रकार- 


1)वर्णनात्मक शोध– यह शोध हमेशा सर्वे मेथड से किया जाता है। इस शोध का मुख्य उद्देश्य कारण से ज्यादा किसी घटना के प्रभाव को जानना होता है। यह तथ्य जानने पर अधिक जोर देता है।


2)विश्लेषणात्मक शोध- इस शोध में किसी नई व्याख्या को प्रस्तुत किया जाता है। यह नई व्याख्या किसी पुरानी के आधार पर होती है यानी जो कुछ भी एक्जिस्टेंस (existence) में है उसी का रिसर्च करके नई व्याख्या देना।


3)मौलिक शोध– इसमें किसी नए सिद्धांत का प्रतिपादन किया जाता है। मौलिक शोध को शुद्ध शोध( Pure research) सैद्धांतिक शोध, बेसिक रिसर्च, फंडामेंटल रिसर्च के नाम से भी जाना जाता है।


4)एप्लाइड रिसर्च (Applied Research)-  जब किसी पुरानी थ्योरी को आधार मानते हुए रिसर्च किया जाता है तो यह अप्लाइड रिसर्च कहलाता है। इसमें किसी पुरानी थ्योरी को अप्लाई किया जाता है और एक नई थ्योरी दी जाती है।


5)गुणात्मक रिसर्च– व्यावहारिक विज्ञान की रिसर्च गुणात्मक रिसर्च ही होती है। इसमें क्या,क्यों,कैसे से जुड़े प्रश्नों के जवाब तलाश किए जाते हैं। यह क्वालिटेटिव होती है। 


6)संख्यात्मक रिसर्च- इसमें संख्या की खोज की जाती है। संख्यात्मक रिजल्ट से निकलने वाला परिणाम परसेंटेज में होता है और वह एक संख्या होती है यानी कि क्वांटिटेटिव।


7)प्रयोगात्मक शोध- यह विज्ञान आधारित रिसर्च है। इसे लैब में संपन्न किया जाता है। इसमें चर यानी वेरिएबल को कंट्रोल किया जा सकता है। रिसर्च के बाद किसी घटना के घटित होने के कारणों का पता किया जाता है।

8)वन टाइम रिसर्च- ऐसीे रिसर्च जिसे केवल एक बार किया जाए। उदाहरण पीएचडी रिसर्च।


9)कंपैरेटिव रिसर्च( तुलनात्मक)- इसमें दो चरों के मध्य संबंधों का पता लगाने का प्रयास किया जाता है।


10)ऐतिहासिक शोध- इस शोध में इतिहास से जुड़े विषय लिए जाते हैं। ऐतिहासिक शोध में लिया जाने वाला डाटा सेकेंडरी होता है। इसमें पूर्व की घटनाओं का अध्ययन करके कुछ नया पता लगाने की कोशिश की जाती है।


11)लोंगिट्यूडनल रिसर्च(अनुदैर्ध्य या Longitudinal)- इस तरह की रिसर्च एक निश्चित अंतराल पर बार-बार की जाती है। इसमें चलो की संख्या समान होनी चाहिए। इस तरह के शोध में डिफरेंस यानी कि अंतर जानने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण-जनगणना।(Media sodh)


12)एक्सप्लोरेट्री रिसर्च ( अन्वेषणात्मक रिजल्ट)- इस प्रकार की रिसर्च में हमेशा कुछ नया एक्स्प्लोर किया जाता है इसलिए इसमें हाइपोथेसिस नहीं बनाई जाती है। जब किसी विषय की जानकारी शोधार्थी को नहीं होती है तब यह शोध किया जाता है। यह एक निश्चित उद्देश्य पर काम करता है। 

सर्वेक्षण की विधियां(Media sodh)-


●प्रश्नावली तैयार करके    

●टेलीफोन से    

●मेल से    

●डोर टू डोर    

●इंटरव्यू    

●शेड्यूल मेथड  

 ●पायलट मेथड


सैंपलिंग की विधियां(Media sodh)


‘जनसंख्या का वह छोटा हिस्सा जो पूरी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है नमूना (सैंपल) कहलाता है।’


   नमूना विधि के लाभ–  समय की बचत, धन की बचत, सटीक परिणाम, कम इकाई गहन अध्ययन।


   नमूना विधि की सीमाएं- पूर्वाग्रह की संभावना, प्रतिनिधि नमूना चुनने में कठिनाई, अपर्याप्त-भौगोलिक क्षेत्र की विविधता।


   नमूना इकाई चुनने की प्रक्रिया– सबसे पहले यूनिवर्स का निर्धारण करना, फिर नमूना इकाई सुनिश्चित करना, उसके बाद स्रोत सूची तैयार करना, बेहतर नमूने का संभावित आकार तैयार करना, फिर प्रतिनिधि नमूने की परख करना और नमूने की विश्वसनीयता की जांच करना।

Media sodh करते हुए शोधकर्ता के उत्तरदायित्व- 


  ●शोधार्थी में ईमानदारी हो  

●शोध के परिणाम के प्रति कोई पूर्वाग्रह ना हो  

●गोपनीयता रखे 

●जिम्मेदार प्रकाशन व मार्गदर्शन  

●शोध की सामाजिक जिम्मेदारी समझे 

●रिसर्च के बाहरी हस्तक्षेप से बचे 

●शोधकर्ता अपने विषय से भटके नहीं  

●शोधकर्ता अपने शोध के विषय की प्रासंगिकता को सिद्ध कर पाए 

●शोधकर्ता सही सैंपल मेथड का चयन करे 

●शोध की आगामी संभावनाएं बताए  

◆सही संदर्भ लेखन करे


शोध के उपकरण(media sodh)- 


शोधार्थी जिसका प्रयोग सूचना या आंकड़े एकत्र करने में करता है, शोध के उपकरण कहलाते हैं। यह उपकरण- प्रश्नावली, अनुसूची, साक्षात्कार, केंद्रित समूह अध्ययन हैं।


 ●प्रश्नावली– शोध के लिए तैयार प्रश्नावली में बहुविकल्पीय प्रश्न होने चाहिए। प्रश्नों की संख्या सीमित होनी चाहिए। प्रश्न सहज भाषा में होंगे तो उत्तरदाता को उत्तर देने में अधिक आसानी होगी। प्रश्नावली में व्यक्तिगत सवाल पूछने से बचना चाहिए। प्रश्न विषय के इर्द-गिर्द ही घूमने चाहिए। प्रश्नावली की भाषा उत्तरदाता की भाषाई पृष्ठभूमि से मिलने वाली हो।

प्रश्नावली मतदाताओं की जनसांख्यिकी को स्पष्ट करने वाली हो। प्रिंट साफ सुथरा हो तथा यह विविधता से भरी हो। प्रश्नावली में प्रश्नों का विभाजन विषय एवं विषय की प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। प्रश्नों में तारतम्यता होनी चाहिए।


 ●अनुसूची- अनुसूची एक प्रपत्र (Form) है जिसमें प्रश्नों के साथ खाली तालिका भी होती है। शोधकर्ता, उत्तरदाता से प्रश्न पूछता है और प्राप्त सूचनाओं को खुद इन तालिकाओं में भरता जाता है।


अनुसूची की विशेषताएं– शोधार्थी खुद लेकर उत्तरदाता के पास जाता है। पूछे प्रश्नों में तारतम्यता या प्रवाह हो। भाषा बेहद आसान व स्पष्ट हो। बातचीत के लहजे में उत्तर मिले।  प्रश्न विषय से ही जुड़े हों। प्रश्न चुनाव सही हो। 


अनुसूची के लाभ- इससे अशिक्षित उत्तरदाताओं से भी सूचना मिलती है।  सूचनाओं को तालिकाबद्ध करना आसान होता है।  स्पष्ट व पूरी सूचनाएं प्राप्त होती हैं। 


अनुसूची की कमियां अथवा सीमाएं- यह एक खर्चीली प्रक्रिया है। इसके लिए फील्ड स्टाफ की आवश्यकता होती है। 


अनुसूची के प्रकार– अनुसूची चार प्रकार की होती है- साक्षात्कार अनुसूची, दस्तावेज अनुसूची, रेटिंग अनुसूची, अवलोकन अनुसूची।

 ●केंद्रित समूह अध्ययन- शोध समस्या पर उत्तरदाताओं से सामूहिक विमर्श किया जाता है। यह एक प्रकार का सामूहिक साक्षात्कार भी कहा जा सकता सकता है। 


केंद्रित समूह अध्ययन के गुण- समय की बचत होती है। कम खर्चीली प्रक्रिया है।  गुणात्मक शोध के लिए उपयोगी है।(media sodh)


केंद्रित समूह अध्ययन के दोष– मात्रात्मक शोध के लिए नहीं। कुछ उत्तरदाता एकजुट होकर दूसरे का मत प्रभावित कर सकते हैं।


साक्षात्कार– शोध का एक उपकरण साक्षात्कार भी है।  साक्षात्कार व्यक्तिगत तौर या समूह में लिया जा सकता  है। साक्षात्कार के प्रश्नों की सूची पहले ही बना लेनी  चाहिए। प्रश्न गुणात्मक तथा मात्रात्मक हो सकते हैं।  साक्षात्कार करते समय ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी प्रश्न को घुमा फिरा कर नहीं पूछा जाए। यदि शोधार्थी को प्रश्नों के स्पष्ट उत्तर प्राप्त करने हैं तो प्रश्न भी स्पष्ट तरीके से ही पूछने चाहिए।


शोध की विधियां(Media sodh)


1) जनगणना– शोध क्षेत्र की पूरी जनसंख्या का अध्ययन किया जाता है। यह मूल रूप से मात्रात्मक तरीका है। इसमें यूनिवर्स की प्रत्येक इकाई का अध्ययन किया जाता है। शोधकर्ता नमूनों पर निर्भर नहीं रहता। इसकी विशेषता यूनिवर्स की संपूर्णता के अध्ययन में है। जनगणना में समय व खर्च दोनों ज्यादा आते हैं और इसमें मानव संसाधनों का भी अधिक प्रयोग होता है।


2) केस स्टडी– केस स्टडी का संबंध किसी व्यक्ति, समूह संगठन, संस्था या घटना के बारे में गहन अध्ययन करने से है। इस विधि में एक या अनेक घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। पी. वी. युंग के अनुसार- ‘केस स्टडी, किसी सामाजिक इकाई को खंगाला या उसका विश्लेषण करना है।’ यह गुणात्मक विधि है।

इसका उद्देश्य इकाई विशेष के जटिल व्यवहार और तौर-तरीकों को समझना, उसके कारणों और प्रभावों के बीच अंतर संबंधों को खोजना है। केस स्टडी में भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पहलू पर भी ध्यान दिया जाता है। इसमें संख्या के बजाय विश्लेषण पर अधिक बल दिया जाता है। इस स्टडी में असल जिंदगी, स्थितियों के एक पहलू विशेष का स्थिति विशेष में अध्ययन किया जाता है। कोई घटना क्यों हुई, क्या कारण था, प्रभाव क्या हुआ, का पता लगाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।


3) सर्वे अथवा सर्वेक्षण– यह शोध की सबसे पुरानी और सामान्य विधि है। सर्वेक्षण में घटनाक्रम, प्रक्रिया और व्यवहार पर ध्यान दिया जाता है। इसमें पूरी जनसंख्या में से नमूना लिया जाता है और यह नमूना उस जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।

इससे प्राप्त सूचना को पूरी जनसंख्या सामान्य व्यवहार माना जाता है। सर्वेक्षण में 2 शोध उपकरणों का प्रयोग किया जाता है- प्रश्नावली और अनुसूची। सर्वेक्षण विधि के लिए एक सुनिश्चित जनसंख्या तथा जनसंख्या का सच्चा प्रतिनिधित्व करने वाला नमूना आवश्यक है। सर्वेक्षण, मेल से, टेलीफोन से, व्यक्तिगत तौर पर, इंटरनेट से या ऑनलाइन तरीके से किया जा सकता है।


4) साक्षात्कार विधि– यह सबसे ज्यादा प्रयोग की जाने वाली विधि है। यह व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक होती है। इसमें शोधकर्ता उत्तरदाता से संवाद स्थापित करता है। इससे प्रत्यक्ष एवं गहन अध्ययन किया जा सकता है। साक्षात्कार विधि की सबसे खास बात यह है कि इसमें मिलने वाली प्रक्रिया त्वरित होती है।

Media sodh के चरण – 

Media sodh के निम्नलिखित चरण होते हैं-


●विषय का चुनाव (Topic Selection)

●साहित्य अवलोकन 

●शोध का उद्देश्य 

●परिकल्पना (Hypothesis)

●शोध प्रारूप (Research Design)

●शोध का तरीका (Research Method): डाटा इकट्ठा करना 

●डाटा की तालिका बनाना (Data Tabulation)

●आंकड़ों का विश्लेषण 

●परिकल्पना की जांच करना (To Check Hypothesis)

●परिणाम: रिसर्च में क्या पाया

●परिणाम का सामान्यीकरण 

●शोध की सामाजिक उपयोगिता

 ●नीति निर्माण में रिसर्च की मदद 

●शोध की कमियां 

●शोध की संभावनाएं 

●संदर्भ लेखन


Media sodh समस्या का चयन:

१)टॉपिक सिलेक्शन  शोध समस्या का चयन निम्नलिखित आधारों पर करना चाहिए- रुचि, व्यावहारिक अनुभव, सामग्री की उपलब्धता, विषय विशेषज्ञता, साहित्य अवलोकन: पूर्व के साहित्य से मदद लेना, नैतिकता संबंधी मुद्दे। शोध समस्या का चयन करते समय विषय की प्रासंगिकता का ध्यान रखना चाहिए। विषय समसामयिक होना चाहिए। समय की बाध्यता के साथ-साथ आर्थिक पहलू का भी ध्यान रखना चाहिए।


2) साहित्य अवलोकन करना- यह रिसर्च से पहले किया जाता है। इसमें समाचार पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों तथा इंटरनेट की मदद से विषय से संबंधित सभी जानकारी इकट्ठा करके उनका अध्ययन किया जाता है। साहित्य अवलोकन करने से शोध समस्या में एकाग्रता व स्पष्टता हो जाती है। शोध की कार्यप्रणाली में सुधार हो जाता है। इससे ज्ञान के आधार को विस्तृत किया जा सकता है। पाए गए परिणामों के लिए संदर्भ भी उपलब्ध हो जाता है।


3) शोध का उद्देश्य- किसी भी शोध को करने से पहले सबसे पहले उसके उद्देश्यों पर बात की जाती है। इसमें हम रिसर्च क्यों करना चाहते हैं, हमारे लिए रिसर्च की क्या उपयोगिता है, इस सवाल का जवाब तलाश किया जाता है। शोध का उद्देश्य सत्य की खोज करना, नवीन तथ्यों को ढूंढना, किसी घटना के बारे में नई जानकारी प्राप्त करना या फिर किसी विशेष स्थिति का सही वर्णन प्रस्तुत करना हो सकता है। 


4) परिकल्पना– दो चरों के मध्य संबंधों का अनुमान जिसकी जांच नहीं की गई है, परिकल्पना कहलाती है। परिकल्पना एक स्टेटमेंट होती है, इसमें शोध के विषय के दो चरों के संबंधों का अनुमान लगाया जाता है। परिकल्पना को सरल, सटीक व धारणा के परिप्रेक्ष्य में बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए। अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए।यह एक विमीय हो यानी इसको एक समय में एक ही अनुमान लगाना चाहिए।


परिकल्पना दो प्रकार की होती है- वैकल्पिक परिकल्पना तथा शून्य परिकल्पना।

1) वैकल्पिक परिकल्पना- यदि रिसर्च के बाद दो चरों के मध्य लगाया गया संबंधों का अनुमान सही सिद्ध जाता है तो यह वैकल्पिक परिकल्पना होती है। यह हमेशा सकारात्मक होती है। इसे अंग्रेजी में Alternate Hypothesis कहते हैं। इसे H1 से प्रदर्शित किया जाता है।उदाहरण-बारिश के कारण जाम लगा है।

2) शून्य परिकल्पना– यदि रिसर्च के बाद दो चरों के मध्य संबंध का अनुमान गलत साबित होता है तो यह शून्य परिकल्पना होती है। इसे अंग्रेजी में Null Hypothesis कहते हैं। इसे Ho से प्रदर्शित किया जाता है। उदाहरण- बारिश के कारण जाम नहीं लगा है।

कोई भी परिकल्पना दिशात्मक या अदिशात्मक हो सकती है। दिशात्मक में दो चरों के साथ-साथ उनकी दिशा भी बताई जाती है। वही अदिशात्मक में चरों के साथ उनकी दिशा नहीं दी जाती है।परिकल्पना एक अनुमान है जो सही या गलत सिद्ध हो सकती है। 


5) रिसर्च डिजाइन- रिसर्च क्या-कैसे-कब करनी है इसका एक फॉर्मेट तैयार करना रिसर्च डिजाइन कहलाता है। रिसर्च डिजाइन की मदद से रिसर्च के विभिन्न चरणों को करने में आसानी रहती है तथा रिसर्च समय पर पूरी की जा सकती है।


6) डाटा कलेक्शन: फील्ड वर्क- डाटा कलेक्शन में रिजल्ट संबंधित आंकड़ों का संग्रह किया जाता है। यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण, परिश्रमसाध्य, सर्वाधिक समय लेने वाला कार्य है। विषय के अनुरूप यह तय किया जाता है कि आंकड़े मात्रात्मक होंगे या फिर गुणात्मक। इसमें आंकड़ों के रूप का निर्धारण होता है। आंकड़ों का संग्रह प्रश्नावली तैयार करके, अनुसूची तैयार करके, साक्षात्कार या फिर अवलोकन करके किया जा सकता है। 


यदि आंकड़ों का संग्रह प्रश्नावली के द्वारा किया जा रहा है तो इसे उस व्यक्ति द्वारा ही भरा जाना चाहिए जिसके बारे में शोधार्थी जानकारी प्राप्त कर रहा है। प्रश्नावली में व्यक्तिगत जानकारी नहीं पूछी जानी चाहिए। इसमें सधी भाषा में सवाल होने चाहिए।

ज्यादातर प्रश्न क्लोज एंडेड यानी कि सिर्फ हां या ना में उत्तर देने वाले हो तो बेहतर होगा। प्रश्नों की संख्या सीमित होने चाहिए।वहीं, यदि अनुसूची के द्वारा आंकड़ों का संग्रह किया जा रहा है तो इस अनुसूची को भरने का काम किसी अधिकारी या फिर शोधार्थी के द्वारा ही किया जाना चाहिए।


7) डाटा की सारणी बनाना- आंकड़े शोध प्रक्रिया का कच्चा माल होते हैं इसलिए जरूरी है कि संग्रह के बाद इनका संरक्षण किया जाए। आंकड़ों का सही तरीके से वर्गीकरण करना चाहिए ताकि उनमें से यदि किसी को चुनना हो या किसी आंकड़े का विश्लेषण करना हो तो आसानी से किया जा सके। आंकड़ों का वर्गीकरण करने से उनके विश्लेषण में तथा प्रस्तुतीकरण में आसानी रहती है। सारणी बनाने से आंकड़ों का दोहराव रोका जा सकता है। सारणी को विस्तार से तथा संपूर्णता से बनाना चाहिए।


8) आंकड़ों का विश्लेषण- आंकड़ों को प्राप्त करने के बाद तथा उनकी तालिका बनाने के बाद आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है। यह विश्लेषण विभिन्न आधारों पर होता है। विश्लेषण के माध्यम से हम अपने रिसर्च के परिणाम पर पहुंचने का प्रयास करते हैं। आंकड़ों का विश्लेषण गुणात्मक या मात्रात्मक तरीके से किया जा सकता है।


9) परिकल्पना की जांच करना– आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद शोधार्थी के सामने शोध का नतीजा आने लगता है। इस नतीजे के आधार पर वह अपनी पूर्व में मानी गई परिकल्पना की जांच करता है। इस जांच के आधार पर ही वह तय करता है कि परिकल्पना वैकल्पिक होगी अथवा शून्य। इसी से दोनों चरों के मध्य संबंध का सटीक ज्ञान हो जाता है। (Media sodh)


10) परिणाम- किसी रिसर्च में क्या पाया गया, उस रिसर्च से क्या स्थापित हुआ, यह देखा जाता है। 


11) परिणाम का सामान्यीकरण- परिणाम का सामान्यीकरण से तात्पर्य- रिसर्च के प्राप्त परिणाम को एक स्टेटमेंट में लिखना। स्टेटमेंट में लिखने से परिणाम सभी के समझने योग्य हो जाता है।


12) रिसर्च की सामाजिक उपयोगिता एवं नीति निर्माण में मदद- रिसर्च के उद्देश्यों में एक स्थान उसकी सामाजिक उपयोगिता को दिया जाना चाहिए जो रिसर्च अथवा शोध, समाज केेे उपयोग का नहीं, उसे सामाजिक वरीयता नहीं मिल पाती है। इसलिए रिसर्च की समाज में अधिक उपयोगिता का ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि रिसर्च समाज के लिए बनी नीति में सकारात्मक बदलाव करने वाला हो।नीतिगत रूप से सामाजिक ढांचे में बदलाव ला सके। (Media sodh)


13) रिसर्च की कमियां तथा उसकी संभावनाओं को बताना– रिसर्च के अंत मेंं उसकी कमियोंं तथा संभावनाओं के बारे मेंं भी बताया जाना चााहिये तााकि शोध करनेेे के लिए तैयार विषय मिल सके। साथ ही साथ रिसर्च की कमियां तथा संभावनाएं बताने से शोध के प्रति ईमानदारी जाहिर होती है। (Media sodh)


14) संदर्भ लेखन – संदर्भ लेखन स्त्रोतों की सूची है जिसका प्रयोग शोध प्रक्रिया के लिए किया जाता है। जिस भी डाटा का प्रयोग शोधकर्ता तथ्यों तथा सूचनाओं के संग्रह के लिए किया करता है, उसे संदर्भ लेखन में स्थान दिया जाता है। संदर्भ लिखने से शोध की प्रामाणिकता व प्रासंगिकता बढ़ती है, इससे शोध में तथ्यात्मकता आती है तथा अध्ययन की गंभीरता का पता लगता है। संदर्भ लेखन शोध की विश्वसनीयता बढ़ाने का काम भी करता है। (Media sodh)

विषय-वस्तु विश्लेषण, विषय का औचित्य, तथ्य विश्लेषण: गुणात्मक और मात्रात्मक शोध, शोध करते समय समस्याएं- 

विषय- वस्तु विश्लेषण (Content Analysis)- 

मीडिया की किसी भी लिखित सामग्री की गुणात्मक और मात्रात्मक रूप में जांच करना, विषय- वस्तु विश्लेषण कहलाता है।


शोध करते समय विषय का विश्लेषण किया जाता है। कंटेंट यानी विषय लिखित अथवा रिकॉर्डिड रूप में हो सकता है। विषय विश्लेषण पर बात करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इसका मतलब मात्र विश्लेषण करना है समीक्षा करना नहीं, यानी जो जैसा है उसे वैसा ही प्रस्तुत करना।

यदि गुणात्मक रूप से विश्लेषण किया जा रहा है तो उसमें उस विषय में बताए गए विचार, इरादे, भावना, रुझान पर बात की जाती है। वहीं यदि मात्रात्मक रूप से विश्लेषण किया जाता है तो उसमें संख्या अथवा बारंबारता पर बात की जाती है। 


विषय- वस्तु विश्लेषण की विशेषताएं- 

●यह नियम आधारित होता है। 

●यह विषय का एक व्यवस्थित रूप प्रस्तुत करता है।  

●इसमें पूरी समस्या को एक निश्चित कथन के रूप में बताया जाता है तथा उसका उत्तर भी दिया जाता है। 

●इसमें वस्तुपरकता यानी ऑब्जेक्टिविटी बनी रहती है।


विषय-वस्तु विश्लेषण के प्रकार– 

विषय-वस्तु विश्लेषण के चार प्रकार हैं।

1) शब्द गणना-  शब्द गणना में यह देखा जाता है कि किसी सामग्री में किसी शब्द का प्रयोग कितनी बार हुआ है। उदाहरण के लिए, यदि राजा राममोहन राय पर कोई सामग्री उपलब्ध है तो उसमें ब्रह्म समाज, राजा राम मोहन राय, सती प्रथा, आदि शब्दों का कितनी बार प्रयोग किया गया है। 


2)अवधारणात्मक विश्लेषण- इसमें किसी विषय से संबंधित कितनी सामग्री उपलब्ध है और वह सामग्री उस विषय के सकारात्मक पक्ष को दिखाती है या नकारात्मक पक्ष को, इस पर बात की जाती है। उदाहरण के लिए- यदि कोई सामग्री मीडिया में आतंकवाद पर है, तो सबसे पहले तो यह देखा जाएगा कि आतंकवाद पर कितनी बार खबर को प्रसारित किया गया है। दूसरा, कि आतंकवाद बढ़ने के बारे में बात की गई है या फिर आतंकवाद घटने के बारे में। 


3)शब्दार्थ विषय विश्लेषण- इसमें किसी खास शब्द का अर्थ निकालते हैं यानी सामग्री में उस खास शब्द को प्रयोग करने के मायने क्या है, इस बारे में विस्तार से विश्लेषण किया जाता है।


4) मूल्यांकनात्मक विशेषण– इसमें खबर के एंगल के बारे में बात की जाती है। जो सामग्री उपलब्ध है, उसमें उसे लिखने या कहने की भावना क्या थी, उसका इरादा क्या था, क्या उसमें किसी व्यक्ति की आलोचना की गई या फिर प्रशंसा। इन सब बातों पर विचार किया जाता है।


विषय का औचित्य(Media sodh)– 


विषय के औचित्य से तात्पर्य जो भी विषय शोधार्थी द्वारा शोध के लिए चुना गया है, उसे लेने के मायने क्या हैं। विषय पर उसी खास विषय पर शोध क्यों किया जाना चाहिए, इस प्रश्न का जवाब इसी में मिलता है। विषय ऐसा होना चाहिए जो समसामयिक हो, प्रासंगिक हो।

विषय में शोधार्थी द्वारा किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। विषय सामाजिक उपयोगिता के अनुकूल होना चाहिए। शोधार्थी को अपने विषय पर पूरी निष्ठा और ईमानदारी से काम करना चाहिए ताकि एक अच्छा शोध कार्य लोगों के समक्ष आ सके। 

तथ्य विश्लेषण-

तथ्य विश्लेषण में हम यह पता लगाते हैं कि शोध में फैक्ट यानी तथ्य कहां से लिया गया है, उसका सोर्स क्या है, उसकी बारंबारता कितनी है, इसके बाद तथ्य की सत्यता की जांच की जाती है और उसका विश्लेषण किया जाता है।


तथ्य के बारे में सारी जानकारी पता करना और फिर उसका विश्लेषण करना ही तथ्य विश्लेषण कहलाता है


गुणात्मक शोध एवं मात्रात्मक शोध-


गुणात्मक शोध में जहां हम गुणों का अध्ययन करते हैं वही मात्रात्मक या परिमाणात्मक शोध में मात्रा या संख्या का अध्ययन किया जाता है।


गुणात्मक शोध में परिणाम के सामान्यीकरण की संभावना कम होती है वहीं मात्रात्मक शोध में सामान्यीकरण की अधिक संभावना होती है। 
गुणात्मक शोध विषयनिष्ठ होते हैं यानी किसी विषय पर विस्तार से उत्तर। वही मात्रात्मक शोध वस्तुनिष्ठ होते हैं यानी एक शब्द में उत्तर।


गुणात्मक शोध वर्णनात्मक होते हैं वही मात्रात्मक शोध संख्या आधारित होते हैं।


 गुणात्मक शोध में अनस्ट्रक्चर्ड और सेमी स्ट्रक्चर्ड रिस्पांस के कारण उत्तर के कई विकल्प होते हैं वही मात्रात्मक शोध में निश्चित प्रतिउत्तर का विकल्प होता है।

गुणात्मक शोध में परियोजना के स्तर पर कम समय की आवश्यकता होती है पर विश्लेषण में अधिक समय लगता है। वही मात्रात्मक शोध में परियोजना के स्तर पर अधिक समय लगता है लेकिन विश्लेषण में कम समय की आवश्यकता होती है।


गुणात्मक शोध के अंतर्गत, शोध के परिणाम की वैधता और विश्वसनीयता, शोधकर्ता के प्रयास एवं परिश्रम पर निर्भर करती है। वहीं मात्रात्मक शोध में शोध के परिणाम की वैधता व विश्वसनीयता प्रयुक्त तकनीकों पर निर्भर करती है।


गुणात्मक शोध में चरों का उनके गुणों के आधार पर विश्लेषण किया जाता है। गुणात्मक से तात्पर्य है- गैर संख्यात्मक डाटा संग्रह, वही मात्रात्मक शोध आंकड़ों पर आधारित होता है और इसका निष्कर्ष भी आंकड़ों द्वारा ही निर्धारित होता है।(Media sodh)

शोध(Media sodh) की समस्याएं– 


 ●विषय चयन में अस्पष्टता 

●संसाधनों की कमी  

●साहित्य की कमी 

●शोध प्रक्रिया का चयन 

●सैंपलिंग की समस्या: आकार या मेथड के स्तर पर 

●डाटा तालिका की समस्या  

●कंटेंट एनालिसिस की समस्या  

●रिसर्च डिजाइन करने में समस्या 

●रिसर्च परिणामों का सामान्यीकरण करने में समस्या  

●संदर्भ लेखन में समस्या: कोई संदर्भ न छूटे

संदर्भ लेखन की आवश्यकता और औचित्य, संदर्भ लेखन की आवश्यकता, संदर्भ लेखन में समाहित तत्व, पुस्तक, समाचार पत्र, पत्रिका के लिए संदर्भ लेखन, टीवी, सिनेमा, इंटरनेट से संदर्भ लेखन, फोटो संदर्भसंदर्भ लेखन की आवश्यकता और औचित्य-


संदर्भ लेखन उन स्रोतों की सूची है जिनका प्रयोग शोध प्रक्रिया और रिपोर्ट लेखन के लिए किया जाता है। जिन स्त्रोतों का प्रयोग शोधकर्ता, तथ्यों- सूचनाओं के संग्रह और विचार ग्रहण के लिए करता है, वे सभी संदर्भ सूची में शामिल किए जाते हैं। संदर्भ सूची, शोध रिपोर्ट के अंतिम पृष्ठ या पृष्ठों में होती है। संदर्भ सूची और परिशिष्ट, किसी भी शोध अध्ययन, शोध कार्य एवं शोध पत्र की अनिवार्यता है। (Media sodh)


संदर्भ लेखन की आवश्यकता-

संदर्भ लेखन से– 

●शोध की प्रामाणिकता- प्रसंगिकता बढ़ती है। 

Media sodh की सामग्री का श्रेय दिया जाता है। 

●इससे अध्ययन की गंभीरता का पता लगता है।  

●शोध में तथ्यात्मकता आती है।  

●आगामी शोधों को दिशा देना तथा संदर्भ से भविष्य की रिसर्च करने में भी आसानी होती है।  

●शोध की विश्वसनीयता बढ़ जाती है।  

●बौद्धिक चोरी से बचने के लिए भी संदर्भ लेखन किया जाता है। 


संदर्भ लेखन में समाहित तत्व- लेखक का नाम, लेख/पुस्तक का नाम, शोध पत्र-पत्रिका/समाचार पत्र का नाम, प्रकाशक का नाम, प्रकाशन वर्ष,  पृष्ठ संख्या, अंक संख्या


पुस्तक, समाचार पत्र, पत्रिका के लिए संदर्भ लेखन- 
पुस्तक– लेखक का नाम, पुस्तक का शीर्षक(वर्ष), शहर प्रकाशक, उदाहरण- कुमार सो.• मीडिया बाजार(2010) •दिल्ली •राजहंस


समाचार पत्र- लेखक का नाम, लेख शीर्षक, समाचार पत्र का नाम, प्रकाशन स्थान, राज्य, पृष्ठ संख्या 
पत्रिका– लेखक का नाम, वर्ष, लेख शीर्षक, पत्रिका, अंक, पेज संख्या


टीवी, सिनेमा, इंटरनेट से संदर्भ लेखन, फोटो संदर्भ- 
टीवी– एपिसोड नंबर, कार्यक्रम नाम, चैनल 
सिनेमा– फिल्म शीर्षक, निर्देशक, वितरण वर्ष
इंटरनेट– संदेश लिखने वाले का नाम (अंतिम नाम पहले), दिनांक, संदेश का विषय, उपलब्ध ईमेल पता
फोटो–  सौजन्य से- पीआईबी, फाइल फोटो, फोटोग्राफर का नाम, साइट, ईयर

Media sodh…..सामग्री का संकलन कई किताबो से किया गया है.. केवल एजुकेशन कार्य हेतु उपयोग करें..

उन स्टूडेंट्स के लिए जो किसी वजह से ऑनलाइन क्लास नहीं कर पा रहे…

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By Admin

4 thought on “Media sodh(मीडिया शोध)”

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